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12 November 2014

परिवर्तनों के साथ.......

जीवन के
स्वाभाविक
अस्वाभाविक
परिवर्तनों के साथ
हम चलते रहते हैं
अपनी राह
करते रहते हैं
अपने कर्म
निभाते रहते हैं
अपना धर्म
फिर भी
अनजान बने रहते हैं
कभी कभी
डगमगाने लगते हैं
जब उतरने लगती हैं
मुखौटों की
एक एक परतें
और सामने
आने लगता है
एक अनचाहा काला सच
जो दबा हुआ था
सफेदी की भीतरी तहों में
उस सच के
बाहर आने के बाद
परतों की सिलाई
उधड़ने के बाद 
हर ओर से उठतीं
अस्तित्व को भेदतीं 
उँगलियाँ
रह सकती हैं
अब भी
अपनी सीमा के भीतर
गर कर लें संकल्प
कि
न होने देंगे खुद पर
समय के
रूप परिवर्तन का असर  ।

~यशवन्त यश©

1 comment:

  1. सत्य चाहे कितना भी अनचाहा हो सदा आगे ही ले जायेगा...परिवर्तन होगा तो शुभ के लिए ही...

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