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22 September 2013

इस गली ने इन्सानों को ही,गधा बना दिया

फेसबुक पर आदरणीया प्रियंका श्रीवास्तव जी द्वारा साझा किये गए इस चित्र को देख कर  जो मन में आया-

सोचा था इंसान बन कर निकलेंगे,गधे इस गली से
इस गली ने इन्सानों को ही,गधा बना दिया ।
यूं तो मालूम न था अब तक,पर जब मालूम चला तो
अच्छा भला देख सकता था,अंधा बना दिया ।
अब कंधों पर बोझ है,जिल्द बंधी चिन्दियों का
भीतर से काला कुर्ता,ऊपर उजला बना दिया ।
माना कि यहाँ दलदल,फिर भी है जाना इसी रस्ते से
इस रस्ते ने हर सस्ते को,महंगा बना दिया।

~यशवन्त यश©

12 comments:

  1. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 25/09/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. ब्लॉग का काया कल्प
    बदलने के लिए बधाई दूँ
    या
    अच्छी रहना के लिए बधाई दूँ
    सोच कर फिर आती हूँ
    अगली बार
    जब केवल रचना पर ध्यान होगा
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल सोमवार (23-09-2013) को "वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए.." (चर्चा मंचःअंक-1377) पर भी होगा!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ब्लॉग बहुत सुन्दर लग रहा है। और उसपर लिखी ये कविता और भी ज़्यादा।

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति .... विजया दशमी की बधाई मेरे भी ब्लॉग पर आपका स्वागत है

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  6. बहुत सुंदर प्रतुति..
    आप का ब्लॉग भी बहुत सुंदर है इस पे आते ही मन बांध सा गया है इसकी सुन्दरता से और आपकी कविता से..
    prathamprayaas.blogspot.in-

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  7. बेहतर कहा यशवंत

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  8. माना कि यहाँ दलदल,फिर भी है जाना इसी रस्ते से
    इस रस्ते ने हर सस्ते को,महंगा बना दिया।
    बहुत सुन्दर

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  9. बढ़िया प्रस्तुति |

    मेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम

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  10. bahut hi sundarta se sachchayi ko byaan kiya apne .. inssano ko gadha banane ki muhim chal rahi wo bhi jitna mahnga skul utna mahnga gadha .. bha gayi ye rachna ..subhkamnaye :)

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