प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

08 January 2013

क्षणिका

खामोशी में
घड़ी की
डरावनी टिक टिक 
न जाने कैसा
आनंद पाती है
कभी न थमने में।

 ©यशवन्त माथुर©

4 comments:

  1. बहुत अच्छे बंधू | बढ़िया अभिव्यक्ति |

    Tamasha-e-zindagi

    ReplyDelete
  2. अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ......

    ReplyDelete
  3. बहुत पहले मेरे सोने के कमरे में थी ऐसी घड़ी ..........
    कई बार मन किया होगा ..........
    उतारूँ और चुर-चुर कर दूँ .....
    शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  4. मेल पर प्राप्त टिप्पणी -
    indira mukhopadhyay


    Very correct expression Yashwantji

    ReplyDelete
+Get Now!