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04 January 2013

सफर की दास्तान....

बड़े अजीब से
इन रास्तों पर चल कर
कभी गिर कर
कभी संभल कर
ज़रूरी नहीं कि कोई
इनसां ही
बने हमसफर ...
किनारे गिरे पड़े
टेढ़े मेढ़े पत्थर
पैरों की
खाते हुए ठोकर
सुना सुना कर
खटर पटर
संगीत की तान....
कर देते हैं पूरी
इस सफर की दास्तान।
©यशवन्त माथुर©

14 comments:

  1. सही बात है, ज़िन्दगी का सफ़र जारी रहता है, किसी के लिए भी नहीं रुकता... गहन भाव... शुभकामनायें

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  2. संगीत की तान....
    कर देते हैं पूरी
    इस सफर की दास्तान।

    सच्चाई कितने सुन्दर ढ़ंग से ...... !!

    शुभकामनायें :))

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  3. अच्छा पत्थरों में तो नहीं लेकिन हाँ चिड़ियों का कलरव...पानी का बहना ...चक्की की आवाज़....रहट की आवाज़...इन में तो संगीत सुना था

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  4. पत्थर हमसफ़र????
    हाँ पत्थर दिल इंसानों से तो बेहतर ही साबित होंगे....

    अच्छी रचना...
    सस्नेह
    अनु

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  5. ज़रूरी नहीं कि कोई
    इनसां ही
    बने हमसफर ...

    ....बहुत सच कहा है...सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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  6. Kabhi kabhi insanoo se zada aachi sangat MUSIC ki hoti h... beautiful one!!

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  7. वाह क्या बात है
    सार्थक सन्देश देती रचना !

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  8. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

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  9. सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना !शुभकामनाएं यशवन्त

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  10. अकेले कोई सफर नहीं कटता
    हमसफ़र न सही ...पत्थर ही सही
    बहुत खूब

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  11. हमसफ़र न हो तो पत्थर ही सही ....बेहतरीन भाव,,,

    recent post: वह सुनयना थी,

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  12. जिन्दगी का सफर अनवरत चलता ही रहता चाहे जिन्दगी में सुख आये या दुःख।बहुत ही अच्छी रचना।
    राजेन्द्र ब्लॉग

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