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17 January 2013

उल्लू जैसे सपने

दिन के उजाले में
सो जाते हैं सपने
रात के अंधेरे में
जाग जाते हैं सपने

अपने से लगते हैं
कभी पराए से लगते हैं
रोते हैं खौफ से
कभी बिंदास हँसते हैं

रंग बदलते हैं सपने
यूं तो गिरगिट की तरह
नीरस स्वाद की तरह
खुद को दोहराते हैं सपने

मतलबी बन कर
तो कभी बेमतलब ही सही
ख्यालों की शाख पे 
उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।  

©यशवन्त माथुर©

10 comments:


  1. मतलबी बन कर
    तो कभी बेमतलब ही सही
    ख्यालों की शाख पे
    उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।
    बहुत खूब
    New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
    New post: कुछ पता नहीं !!!

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  2. वाह..
    ख्यालों की शाख पे
    उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।
    बहुत अच्छी रचना..

    सस्नेह
    अनु

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  3. मतलबी बन कर
    तो कभी बेमतलब ही सही
    ख्यालों की शाख पे
    उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने। ...बहुत सही...!

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  4. मतलबी बन कर
    तो कभी बेमतलब ही सही
    ख्यालों की शाख पे
    उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।

    वाह ! सच्चाई !!

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  5. Bahut sundar Rachna ...Mathur sahab...Badhai
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_5971.html

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  6. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  7. रंग बदलते हैं सपने
    यूं तो गिरगिट की तरह
    नीरस स्वाद की तरह
    खुद को दोहराते हैं सपने
    .. बहुत बढ़िया...शुभकामनाएं..

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  8. रंग बदलते हैं सपने
    यूं तो गिरगिट की तरह
    नीरस स्वाद की तरह
    खुद को दोहराते हैं सपने

    THE TRUTH

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  9. ख्यालों की शाख पे
    उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।

    ....बिल्कुल सही...

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  10. ख्यालों की शाख पे
    उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।
    बिलकुल सही है... बहुत सुन्दर रचना

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