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28 January 2013

बदतमीज़ सपने

बदतमीज़ सपने 
रोज़ रात को 
चले आते हैं 
सीना तान कर 
और सुबह होते ही 
निकल लेते हैं 
मूंह चिढ़ा कर 
क्योंकि 
बंद मुट्ठी का 
छोटा सा कमरा 
कमतर है 
बड़े सपनों की 
हैसियत के सामने।
  
©यशवन्त माथुर©
 

14 comments:

  1. सार्थक अभिव्यक्ति...

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  2. सपने तो सपने होते है...

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  3. शुभप्रभात बेटे :))
    बहुत बढ़िया (y)
    शुभकामनायें !!

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  4. वाह चंद शब्दों में कितनी बड़ी सच्चाई ,बहुत बहुत शुभ कामनाएं

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  5. सपने कभी तो मुकम्मल होंगे

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  6. बदतमीज़ सपने
    रोज़ रात को
    चले आते हैं
    सीना तान कर
    और सुबह होते ही
    निकल लेते हैं
    मूंह चिढ़ा कर
    क्योंकि
    बंद मुट्ठी का
    छोटा सा कमरा
    कमतर है
    बड़े सपनों की
    हैसियत के सामने।

    सपने ही सच होते हैं रही बात कमरे की तो कमर नहीं कायनात छोटी पड़ जाती है इन्हें संजोने के लिये . खुबसूरत और दिल में उतरने वाली

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  7. अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है

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  9. सपने देखना बहुत जरुरी है, देखेंगे तभी तो पूरे होंगे ना... शुभकामनायें

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  10. सपने तो सपने ही होते हैं उन्हें तमीज सिखाए कौन |उनपर नहीं होता नियंत्रण क्यूँ कि वे स्वतंत्र होते हैं |
    उम्दा कविता है यशवंत जी

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  11. सपनो के लिये मन का आकाश पर्याप्त है !

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  12. waah, asaan si lagne wali gehan rachna.

    shubhkamanyen

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