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15 January 2012

उड़ता रहूँ

अब गिद्ध नहीं हैं आसमां में
तो सोच रहा हूँ
बेखौफ परिंदों की तरह
भर लूँ उड़ान
नीले आसमां में
और जो उड़ूँ
तो उड़ता रहूँ
अनंत ऊंचाइयों तक
जहां वजूद हो
सिर्फ मेरा
जहां सिर्फ
मेरी ही आवाज़ हो
मेरा ही नीरस गीत हो
और मेरा ही साज हो
उस निर्जन मे भी
मैं जानता हूँ
अदृश्य रूप में
कोई तो होगा साथ
जो थामेगा
रोकेगा
रहने देगा
गतिमान
ऊपर की ही ओर 
बहुत
डरता हूँ
नीचे गिरने से
क्योंकि
गुरुत्वाकर्षण का रूप
धर कर 
भूखा काल
नीचे 
कर रहा है
मेरी प्रतीक्षा।

39 comments:

  1. वाह... बेहद प्रभावशाली भावों को व्यक्त किया है

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  2. भर लो उड़ान
    छू लो अनंत ऊंचाइयों को
    हौसलों से उड़ान होती है.... शुभकामनाएं

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  3. भर लो उड़ान, छू लो आसमान..हमारी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ है...

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  4. us anant udan ke liye hardik shubheccha ... bahut hi sundar vichar!!

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  5. अच्छी रचना।
    यशवंत को पढना वाकई सुखद लगता है।

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  6. Vyang se shuru kar ant viyan ke niyam se kiya...
    bahut khub...

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  7. बहुत खूब यशवंत जी उड़ते रहिये और हमेशा गतिमान रहिये ऊपर की ओर...
    शुभकामनाए..

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  8. excellent!!!!
    superb thoughts!!!

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  9. बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति

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  10. बेहद गहन और सार्थक रचना।

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  11. bahut gehre bhav ki rachna.............

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  12. jab udaan bharna hi hai to fir dar kaisa...
    aakhir wajood to har jagah hai, chahe aasman ho ya dharatal...

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  13. प्रभावशाली भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बढ़िया रचना,....

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  14. लाल पर ग्रे... में नहीं पढ़ पाया ¿

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  15. क्या खूब लिखा है ....प्रभावशाली

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  16. सुन्दर बिम्बों का प्रयोग खूबसूरत रचना बधाई

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  17. बहुत खूब यशवंत जी...

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  18. बहुत खूब यशवंत जी...

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  19. गहन भाव ... सारे गिद्ध ज़मीन पर आ गए हैं और नोच रहे हैं जिंदा इंसानों की लाशों को ..

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  20. गहन प्रस्तुति...

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  21. bahut gahree soch se saji prabhavshali rachna...

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  22. प्रेरक रचना।

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  23. नीरस गीत...? हर गीत रसमय हो जाता है जब विश्वास भरा हो...
    कोई तो होगा साथ
    जो थामेगा
    रोकेगा
    रहने देगा
    गतिमान
    ऊपर की ही ओर
    बहुत
    डरता हूँ
    नीचे गिरने से
    ...और हर डर हवा हो जाता है जब विश्वास भीतर हो...सुंदर कविता!

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  24. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  25. बहुत सुन्दर गहरे अर्थ लिए ये पोस्ट बहुत पसंद आई |

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  26. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  27. बहुत
    डरता हूँ
    नीचे गिरने से
    क्योंकि
    गुरुत्वाकर्षण का रूप
    धर कर
    भूखा काल
    नीचे
    कर रहा है
    मेरी प्रतीक्षा। ...............................मन का वाजिब हैं ...सत्य को धारण किये

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  28. बेहद प्रभावशाली पोस्ट है आपकी |

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  29. बहुत सुन्दर भाव !
    आभार !

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  30. उम्दा रचना | बहुत खूब लिखा है |

    सादर |

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  31. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  32. बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट
    welcome to new post...वाह रे मंहगाई

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  33. ऊँचा उड़ने की तमन्ना और काल की ओर खींचता गरुत्वाकर्षण. इन दोनों में से ऊँचा उड़ने की इच्छा महान है. सुंदर कविता.

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  34. बेहतरीन और प्रशंसनीय कविता .

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  35. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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