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05 January 2012

संपन्नता का आधार


(चित्र सौजन्य:गूगल सर्च)
हर रोज़
चौराहे पर
दिखती है भीड़
लोगों की
कारों मे
आते जाते लोगों की

सरसराते भागते लोगों की
बसों से झाँकते लोगों की
टेंपुओं मे ठुसे हुए लोगों की
साइकिल मे चलते लोगों की
कदमताल करते लोगों की

(चित्र सौजन्य:गूगल सर्च)
घिसट घिसट कर चलते लोगों की                                    
फुटपाथों पर सोते लोगों की
नंगों की ,लंगड़ों की
अंधों की

और उसी भीड़  में कहीं
फावड़ा छैनी हथोड़ा थामे भी
दिख जाते हैं
नर -नारी
और गोद मे शिशु
जिनकी अपनी ही
छोटी सी दुनिया है
दो कमरों के
छोटे से घर मे सिमटी हुई
जिसके ऊपर डली है
टीन की छत

फावड़ा थामे वो हाथ
मैले से कपड़ों मे सिमटे वो लोग
आधार हैं
संपन्नता का
फुटों -मीटरों ऊंची दीवारों पर
एक पटरे पर अटकी रहती है
जिनकी साँसों की डोर
रहते हैं विपन्न
उपेक्षित
गुमनाम
ठीक वैसे ही
जैसे अपने मे खोई रहती है
अट्टालिकाओं की नींव ।

(घर के सामने बन रहा एक मकान अब फिनिशिंग पर है ....पाड़ लगाए मजदूर आज कल एक दीवार पर प्लास्टर करने मे जुटे हैं,घने कोहरे मे घर के अंदर बैठ कर जब मैं आराम से यह पंक्तियाँ लिख रहा हूँ वो मजदूर खुले मे अपना काम कर रहे हैं....इन पंक्तियों की प्रेरणा वही मजदूर हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता। )

38 comments:

  1. बहुत खूब...
    दिल को छू गयी आपकी रचना..
    या कहूँ दिल को दुखा गयी ..
    सादर.

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  2. खूबसूरत उदगार, अच्छी रचना

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  3. दिल को छू गयी रचना..
    जीवन का कड़वा सच.....

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  4. बहुत सुंदर भाव की बेहतरीन रचना जो सीधे दिल को कचोटती है,..

    WELCOME to new post--जिन्दगीं--

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  5. kya khun samaj ke us varg ki vibhishikanyen behad trasad haen.aaj ki post satya ko aabhas kra gai .

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  6. यथार्थ को दर्शाती बढ़िया प्रस्तुति ....

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  7. यथार्थ है जी...

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  8. यथार्थवादी रचना ! उन मजदूरों के पास जाकर किसी दिन दुआ सलाम भी कर लीजिए...उनकी आँखों में और भी फसाने हैं...

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  9. kitni saralta se aapne itni gahri baat kahdi...Yashwant ji..sach kahan ham un majduron ke baare mei sochte hai jinhne raat din garmi thand sab sah kar humara sapne pura kiya hoga...
    hum cement ke pinjre mei rehne waale soch bhi chhoti ho jaati hai humari...

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  10. मार्मिक किन्तु सत्य..........बहुत सुन्दर पोस्ट..........हैट्स ऑफ इसके लिए|

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  11. गहरे उतरते शब्‍द ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  12. सुन्दर और सार्थक भाव हैं ....

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  13. ये सबके घर बनाने वाले सच कितने बेघर होते हैं
    आज यहाँ कल जाने कहाँ भटकते फिरते हैं..
    ....एक आम और संवेदनशील रचनाकार में यही तो अंतर है की वह जो देखता है, महसूस करता है उसे जब तक कलम के माध्यम से व्यक्त न कर दें, तब तक उसे चैन नहीं ..
    ..सार्थक मर्मस्पर्शी रचना..आभार

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  14. बहुत सार्थक प्रस्तुति, आभार|

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  15. बहुत संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

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  16. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 7/1/2012 को होगी । कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें। आभार.

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  17. फावड़ा थामे वो हाथ
    मैले से कपड़ों मे सिमटे वो लोग
    आधार हैं
    संपन्नता का

    सच्चाई है, जीवन का रंग है,
    कहीं दर्द है, कहीं उमंग है.
    गहन अनुभूति...

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  18. यथार्थवादी रचना, बहुत उम्दा..........!!
    !

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  19. sach hai badi-badi attalika banane wale haath bhog nhi paate vo aishvarya....

    bilkul sahi chitran kiya hai.

    kavi hriday kisi ke bhi dukh se udvelit ho sakta hai.

    shubhkamnayen

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  20. sach kaha apane
    shayad unake kaamo par log itna dhyan nahi dete
    bad mein jiska ghar hain use kahte hain"kya ghar banaya aapne sahab maan gaye"
    us mazdur ko koi nahi puchta

    mere blog par bhi aaiyega
    umeed kara hun aapko pasand aayega
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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  21. सुन्दर रचना... वाह!

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  22. सच्चाई को उकेरती सुन्दर प्रस्तुति

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  23. सच्चाई को उकेरती अच्छी रचना

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  24. मानवीय संवेदना में गुँथी कविता मन को छू जाती है.

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  25. Antim panktiyon ne moh liya

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  26. अभी तो 64 साल ही हुए हैं आज़ादी के!

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  27. बेहतरीन रचना।
    इंसानी जज्‍बात को करीब से समझने का अवसर देती पोस्‍ट।

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  28. तिल-तिल कर जीवन की रचना.

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  29. कुछ कहना हर बार जरुरी नहीं होता....समझना होता है...उस पर अमल करना भी.....

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  30. सच का आवरण लिए लेखनी

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  31. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  32. यथार्थ से रूबरू...

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