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19 May 2011

अक्सर जब देखता हूँ.....

अक्सर जब देखता हूँ
बुझे हुए चेहरों को
जलती हुई एक लौ की
तमन्ना होती है

कि उड़ जाए वो शिकन
जिसे सजा रखा है चेहरे पर
आँखों  से बहते गम की भी
एक अदा होती है

इन चेहरों को बख्श दो
नूर मुस्कुराहटों का
खामोशी को भी
महफ़िलों की चाह होती है

32 comments:

  1. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है
    वाह दिल को छोने वाली पंक्तियाँ

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  2. खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है
    सुभानल्लाह

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  3. सच कहा खामोशी को भी महफ़िलो की चाह होती है………बहुत सुन्दर

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  4. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है...

    बहुत खूब! बहुत सुन्दर अहसास...सुन्दर भावमयी रचना..

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  5. वाह! बहुत बढ़िया रचना है...

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  6. खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है.............आपकी कविताओं में हमेशा ही अंतर्मन को छूने वाली बात होती है,जो मुझे हमेशा ही "महाकवि निराला" की याद दिलाती है...........बधाई है इस भाव को पाने के लिए....

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  7. वाह, बहुत सुंदर, आपकी दुआ जरूर कुबूल होगी ! आमीन !

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  8. too good Yashwant ji.my net is not working well these days so im not very active on blogs .have a good day .

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  9. बहुत ही सरल-सहज ढंग से ह्रदय के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति.....

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  10. बेहतरीन ......शुभकामनायें !

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  11. शानदार। इसके लिए बस इतना ही। बाकी का और लोगों ने कह दिया है। हम भी उनलोगों में शामिल है।

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  12. बहुत ही सरल-सहज ढंग से ह्रदय के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति|

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  13. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है
    सुंदर.....सार्थक भाव

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  14. खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है

    बहुत खूब

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  15. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है
    बहुत खुबसूरत पढके सच में मज़ा आ गया दोस्त |

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  16. आँखों से बहते गम की भी
    एक अदा होती है..


    लाजवाब पंक्ति...
    बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  17. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! आपके इस ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा!

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  18. वाह! क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती !

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  19. Yashwant ji
    bahut sundar likha hain aapne.
    khamoshi ko bhi mehfilo ki chah
    hoti hain.

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  20. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है ....


    याद आ रहा है.... फिल्म खामोशी में गुलजार का लिखा एक गीत , जिसे लता मंगेशकर ने गाया है। यह गीत मेरे प्रिय गानो में से एक है.....
    प्यार कोई भूल नहीं, प्यार आवाज नहीं,
    एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है।
    न ये झुकती है न रूकती है न ठहरी है कहीं,
    नूर की बूंद है सदियों से बहा करती है।

    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

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  21. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  22. khamoshi ko bhi mahfilo ki chah hoti hai...


    vaah..
    bahut khub..

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  23. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  24. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है ....

    बहुत खूब कहा है ।

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  25. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है

    बहुत ही कोमल ..सुंदर भावनाओं से युक्त कविता और फिर इतना प्यारा संगीत .....
    बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं आप ...!!
    बहुत ही अच्छा लगा संगीत सुनते हुए आपकी भावपूर्ण कविता पढना ..

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  26. इन चेहरों को बख्श दो
    नूर मुस्कुराहटों का
    खामोशी को भी
    महफ़िलों की चाह होती है ....संगीत सुनते हुए आपकी भावपूर्ण कविता अच्छा लगा

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  27. वाह...वाह बहुत खूब!

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