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05 July 2010

पत्रकारिता किधर जा रही है ?

आइये विगत कुछ दिनों की खास ख़बरों पर एक नज़र डालें--


१.अमिताभ बच्चन ने काकोरी में जमीन खरीदी


२.प्रधान मंत्री की कानपुर यात्रा के दौरान उनको भोजन में रंग मिली मूंग की दाल और फंगस युक्त खरबूजे के बीज शामिल थे।


३.क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने शादी की।


४.सचिन तेंदुलकर विम्बलडन में टेनिस मैच देखने गए


ये ख़बरें लगभग सभी अख़बारों ने प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित कीं ।


में पूछना चाहूँगा सभी अख़बारों के प्रमुखों से क्या एक आम आदमी का इन ख़बरों से कोई सरोकार है?हजारों लोग प्रतिदिन जमीन खरीदते और बेचते है तो अमिताभ बच्चन ने कौन सा बड़ा काम किया?देश की ९०-९५ प्रतिशत जनता रोज़ मिलावटी भोजन खाती है,चाहे वो रंग मिली दाल हो,पपीते के बीज मिली काली मिर्च ,या सिंथेटिक दूध ;सवाल यह है की जब हमारी सोच और समझ भी मिलावटी होती जा रही है तो अगर भारत के प्रधानमन्त्री को भोजन में मिलावटी दाल मिल भी गयी तो कौन सी बड़ी बात हो गयी? हजारों लोग हर दिन सगाई और फिर शादी करते हैं क्या महेंद्र सिंह धोनी ने इस तरह क्रिकेट का वर्ल्डकप जीत लिया?


एक तरफ तो बहुत से सम्मानित लेखक और स्तंभकार उच्च स्तर की पत्रकारिता और पत्रकारिता द्वारा भाषा को दिए गए संस्कारों की बात करते हैं वहीँ भ्रष्टाचार की बहती गंगा में आप ही के अधीनस्थ डूबकी लगाने से भी नहीं चूकते। एक सीन देखिये ----


दुकानदार : नमस्कार भैया!कैसे हो?


पत्रकार : बस आप अपनी सुनाओ? सुना है आजकल खूब बिजली चोरी कर रहे हो?(दूकान की छत से जाती हुई कटिया का फोटो दिखाते हुए)


दुकानदार :अब क्या बताएं भैया अगर ये न करें तो इस महंगाई में काम चलाना ही मुश्किल हो जायेगा।


पत्रकार :(मुस्कुराते हुए)और मुश्किल हो जायेगा,में ये फोटो कल के अखबार में छापने जा रहा हूँ।





और सीन का अंत तब होता है जब दुकानदार उस व्यक्ति की मुफ्त में सेवा पानी करता है और एक लिफाफा देता है। और अगले दिन उस से सम्बंधित खबर अखबार में नज़र नहीं आती।


ये तो एक उदाहरण है जो अक्सर कहीं न कहीं नमूदार हो ही जाता है। मेरे अपने अनुभव में है जब एक पार्टी के नेता जी द्वारा चढ़ावा देने से मना कर देने पर मीडियाकर्मी विपक्षी पार्टी के नेता जी से सम्बंधित खबर को ज्यादा प्रमुखता दे कर लिखता है।


ये केवल एक आरोप नहीं एक सच्चाई है जिसे हम जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं। बेहतर यह होगा की उपरोक्त तरह की ख़बरों को यदि मजबूरन छापना ही है तो क्या उन्हें रविवासरीय परिशिष्ट में स्थान नहीं दिया जा सकता?


यदि वाकई में हमें पत्रकारिता के उच्च स्तर की बात करनी है तो सभी अख़बारों के शीर्ष पदाधिकारियों को धरातल की और नज़र डालनी ही होगी।

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